Saturday, 21 January 2012

पाजीपन!

एक जुबां चुपचाप रहती है,
इक जुबां बोले जाती है.
राज़ हम बनाते हैं
इक जुबां खोले जाती है.
अगर हम चुप भी रहते हैं.
तो पाजी दिल धड़कता है.
बड़ा भोला ये बनता है
रह रह के फड़कता है.
मोहब्बत मानती इसको 
बड़ा ऊंचा मसीहा है.
न जाने कोई के यह,
संगदिल न किसी का है.
महबूब के गुस्से पे,
इसे तो प्यार आता है,
इसी प्यार की खातिर,
ये उसे गुस्सा दिलाता है.
और उसी गुस्से पे रह रह के,
इसे गुस्सा भी आता है,
कहे के वो महबूब भी कैसा,
जो पल पल रूठ जाता है.
- अभ्युदय 

No comments:

Post a Comment

Don't leave without saying anything...!