रात को आज नींद नहीं आई,
तकिया गुलगुला, मखमली रजाई
अलग हटा के हम उठ बैठे,
निकले बाहर अकड़े ऐंठे,
कदम बढे बाहर को निकले,
ओस की बूँदें मोती पिघले.
कुत्तों ने एक झुण्ड बनाई
भूंक भूंक के सभा बुलाई,
मसले का कोई हल न निकला
पानी बरसा, शीशा पिघला.
रास्ता सूना, सड़क अँधेरी,
चौकीदार को हो गयी देरी,
पुलिस ढूंढें अपराध का रेकेट
शटर गिरा दुकानें सोयी,
सोयी भिखारन दिनभर रोई.
कीड़ो का एक जमघट नाचे,
स्ट्रीट लाइट के फेरे लगा के.
पेड़ खड़े खडताल बजाएं,
पक्षी सब हड़ताल पे जाएं.
आधी रात का मज़ा अलग है,
न सोने की सज़ा अलग है.
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